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|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
|संग्रह=
}}
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<poem>
मिरा साया जुदा नहीं होता
ये कभी दूसरा नहीं होता
अजनबी अजनबी ही है लेकिन
आशना आशना नहीं होता
सुनते आए थे आज देख लिया
बेकसों का ख़ुदा नहीं होता
खटखटाता रहूँगा मैं जब तक
घर का दरवाज़ा वा नहीं होता
इतने सदमे सहे कि अब दिल को
ऐतबार ए वफ़ा नहीं होता
गोहर ए ताबदार था आँसू
जो पलक से गिरा नहीं होता
क्या कहा रात के अँधेरे में
आसमाँ देखता नहीं होता
उनकी आती अगर ख़बर तो ज़िया
कहीं मेरा पता नहीं होता
</poem>
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|संग्रह=
}}
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मिरा साया जुदा नहीं होता
ये कभी दूसरा नहीं होता
अजनबी अजनबी ही है लेकिन
आशना आशना नहीं होता
सुनते आए थे आज देख लिया
बेकसों का ख़ुदा नहीं होता
खटखटाता रहूँगा मैं जब तक
घर का दरवाज़ा वा नहीं होता
इतने सदमे सहे कि अब दिल को
ऐतबार ए वफ़ा नहीं होता
गोहर ए ताबदार था आँसू
जो पलक से गिरा नहीं होता
क्या कहा रात के अँधेरे में
आसमाँ देखता नहीं होता
उनकी आती अगर ख़बर तो ज़िया
कहीं मेरा पता नहीं होता
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