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Kavita Kosh से
तालिब ए दीद हूँ चेहरा तो दिखा, देखूँ मैं
दरमियाँ परदा है क्या, परदा उठा देखूँ मैं
मेरी रूदाद पे उस शोख़ की आँखें पुरनम
कैस ओ फ़रहाद का अफ़साना सुना देखूँ मैं
आ कभी तू मिरे आँगन में दुल्हन बनकर आ
तेरे हाथों पे लगा रंग ए हिना देखूँ मैं
कोई आहट तो हो टूटे मिरे ज़िन्दां का सकूत
चुप रहूँ, पाँव की ज़न्जीर हिला देखूँ मैं
अपनी क़िस्मत के सितारे को कि बे नूर-सा है
तोड़ कर अर्श से धरती पे गिरा देखूँ मैं
आज गुलशन की हर इक शाख़ है फूलों से लदी
दिल ए पज़मुर्दा को भी हँसता हुआ देखूँ मैं
बे सतूँ पर कि किसी नज्द में क्या जाने रवि
मुझे मिल जाए कहाँ मेरा पता देखूँ मैं
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