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भावार्थ :-- हरि-हरि! (कितने आनन्दकी आनन्द की बात है) मेरा माधव हँस रहा है । देहलीपर देहली पर चढ़ते समय वह बार-बार गिर पड़ता है, मैया उसके करपल्लवको करपल्लव को पकड़कर सहारा देती है । भक्तिके भक्ति के कारण(प्रेम-परवश) माता यशोदाके यशोदा के आगे वह पृथ्वीपर पृथ्वी पर चरण रख रहा है (अवतरित हुआ है) । जिन चरणों से (जगतको जगत को तीन पदमें पद में नापकर) बलि राजाको राजा को उसने छला और अपने चरणनख से गंगाजीको गंगा जी को (उत्पन्न करके) प्रवाहित किया, जिसके स्वरूपसे स्वरूप से ब्रह्मादि देवता मोहित (आशचर्यचकित) हो रहे, जिस (चरणके नखसेचरण के नख से) करोड़ों सूर्य-चन्द्र उगते(प्रकाशित होते) हैं, सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं--अपने स्वामीके स्वामी के उन्हीं चरणों पर बार-बार मैं बलिहारी जाता हूँ ।