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बीजल से एक सवाल / सुमन केशरी
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05:37, 9 अप्रैल 2012
मसल कर बनाई चिन्दियाँ
फैलीं इधर-उधर
कुछ
मेज
मेज़
पर
कई सलवट पड़ी चादर पर
तो बेशुमार कमरे में
निकले को व्याकुल
खुले आकाश में
एफ़० एम० चीख़ता
अनिल जनविजय
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