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सूर स्याम कछु करौ बियारी, पुनि राखौं पौढ़ाइ ॥<br><br>
भावार्थ :-- (माता कहती हैं) `प्यारे लाल! संध्या हो गयी, अब घर चले आओ।दौड़ते आओ । दौड़ते क्यों हो, कहीं चोट लग जायगी, सबेरे फिर खेलना ।' (यह कह कर) स्वयंजाकर स्वयं जाकर भुजा पकड़कर माता मोहन को ले आयी । उनके शरीरमें शरीर में धूलि लिपट रहीथीरही थी, शरीरकी शरीर की धूलि झाड़कर तेल लगाया और गरम जल ले आकर लाकर स्नान कराया । कोमल वस्त्र से श्यामका श्याम का शरीर पोंछकर तब उन्हें घर के भीतर ले गयी सूरदासजी । सूरदास जी कहते हैं--(मैया ने कहा)-)`लाल ! कुछ ब्यालू (सायंकालीन भोजन) कर लो, फिर सुला दूँ ।