|रचनाकार=बशीर बद्र
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}
<poem>
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगीआएगीये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का की ग़ुलाम है
मैं ये मानता हूँ मेरे दिये दिए तेरी आँधियोँ ने बुझा दियेदिए
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
</poem>