भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वही ताज है वही तख़्त है / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है

बड़े शौक़ से मिरा घर जला कोई आँच तुझ पे न आएगी
ये ज़बाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है

यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तेरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है

मैं ये मानता हूँ मिरे दिए तिरी आँधियों ने बुझा दिए
मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

मिरे फ़िक्र-ओ-फ़न तिरी अंजुमन न उरूज था न ज़वाल है
मिरे लब पे तेरा ही नाम था मिरे लब पे तेरा ही नाम है