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इस प्रकार ज्योँ-ज्योँ साहित्य-लेखन की परम्परा आगे बढ़ती जाती है तथा साहित्यानुसँधान के क्षेत्र मेँ नये-नये तथ्योँ का उदघाटन होता जा रहा है, त्योँ-त्योँ साहित्येतिहासकार का कार्य भी गुरुतर होता जा रहा है। हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की परम्परा सर्वथा नवीन ऎतिहासिक दृष्टि को खोजती और प्राप्त करती हुई नव-तत्व विवेचन की ओर अप्रतिहत रूप से अग्रसर है। नित्य नवीनता की उपलब्धि एवँ उसका वैज्ञानिक आकलन ही साहित्यकार का विशिष्ट दायित्व है।
|पीछे= हिन्दी: एक परिचय / राजुल मेहरोत्रा
|आगे= काल-विभाजन और नामकरण / राजुल मेहरोत्रा
|सारणी= हिन्दी काव्य का इतिहास
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