भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
टिक .... टिक ..
तिक .... तिक ...
ओह,
टिक ....तिक
तिक ...टिक .....
इस बसंत को पहनने के लिए
कि जैसे बाहर की धरती से कोई भी रंग उठाने में सलाइयों को डर लग रहा हो
टिक..तिक ...
और फिर इसके बाद फूलों की गोल-गोल पंखुड़ियाँ