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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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तीर्थ से तिरे हैं केते व्रत से तिरे हैं,
तप से तिरे हैं संत आत्मा महान से |
केते तिरे हैं योग यज्ञ के प्रताप प्रभु,
केते तिरे हैं मानव उर ज्ञान से |
केते तिरे हैं दया दान धर्म कर-कर के,
केते तिरे हैं सत्य राम नाम ध्यान से |
एते करमों में मोसों कोई कर्म बन्यो नाय,
शिवदीन तो तरेगा साधू आपकी जबान से |
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