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17:41, 22 जून 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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<poem>
लंगोटी लगाने से, जटा के बढ़ाने से,
स्थान बड़ा पाने से बन बैठे भूप है |
विद्वान् बनने से, मन में यू तनने से,
नाहीं उद्धार होत छाया कहीं धूप है |
निज में ना ज्ञान होत बने बने फिरते भोत,
आत्म दिव्य ज्योति कहाँ, जोत वो अनूप है |
कहता शिवदीन राम बाने को नमस्कार,
साधू संत राम रूप एक ही स्वरूप है |
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