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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>

दूत ने माँ के वचन सुनाये
कहना मोहन से--'मिल जा अब जाने के दिन आये

'सूना है व्रजमंडल तेरा
भवन बना भूतों का डेरा
पति को तेरे दुःख ने घेरा
रहते शीश झुकाए

'तेरी कीर्ति-कथायें सुनकर
पुलक-पुलक उठता है अंतर
माँ का जी कैसे माने पर
उर से बिना लगाये !

'तन रह गया सूख कर आधा
मलिन-वेश रोती है राधा
बेटे! यों किसने मन बाँधा
हम सब हुए पराये !'

दूत ने माँ के वचन सुनाये
कहना मोहन से--'मिल जा अब जाने के दिन आये
<poem>
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