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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>

अब ये गीत तुम्हारे
जिनमें सँजो दिए हैं मैंने अपने सपने सारे

जब भी आशा की लौ खोयी
जब भी जागी सुधियाँ सोयी
जब भी चोट लगी है कोई
मैंने इन्हीं सुरों में अपने मन के भाव उतारे

चाहो तो अपना लो इनको
चाहो तो ठुकरा दो इनको
गाकर भले भुला दो इनको
किन्तु चमकते सदा रहेंगे ये ज्यों नभ के तारे

जब जैसा कुछ जी में आया
मैंने इन गीतों में गाया
बहुत यही, स्वर तुमको भाया
अब यह खेल समाप्त हो चला, क्या जीते या हारे !

अब ये गीत तुम्हारे
जिनमें सँजो दिए हैं मैंने अपने सपने सारे
<poem>
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