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Kavita Kosh से
सै ले मूंडो मोड़ |
जोवे अै दरसाव |
मिनख बापड़ो हारज्या
नेह चूकगो नैण सूं
तोडै़ बधगी राड़ |
कद धरती रै आवसी
उणियारा पर ओप |
सीळो पड़सी कद बता
जबर काळ रो कोप |
धोरां हाळा देश में
पड़े कदे नी काळ |
हे मालिक अरदास है
आप करो रिछपाळ |
म्हारे मरुधर देस री
राम करो रिछपाल |
आवे नी नेड़े कदे
ताती बळती भाळ |
पगां चालती दीसरी
बा बड़कां री बात |
रोटी होज्या रामजी
पेट भरे खा पात |
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यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |
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