काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश
थां सू पैली गज वदन  
मूसक रै गल माल |
पोथी री अैई करे 
दुरभिख में रिछपाल |
लम्बोदर लाजां  मरां 
किंया चढ़ावां भोग |
मूसक ताणी भी नहीं    
दाणा के संयोग ?
माँ सुरसत वरदान दे 
विनती बारम्बार |
बिथा बखाणूं काळ री 
देतूं आखर च्यार |
हंस छोड़ मा आवजे
सुरसत सूनै गांव |
थारे उजले हंस  नीं 
पड़े काळ री छांव |
बालाजी रै देवरे 
रात जगाता लोग |
संवत हो तो म्हे करां
सवामणी रो भोग |
जिण बाढ्या इक बाण सूं
रावण रा दस सीस |
नाम जप्यां जासी नहीं 
काळ जको बिन सीस |
चिड़ी कमेडी कागला 
गांव गया सै छोड़ |
विपदा में कुण साथ दे 
सै ले मूंडो मोड़ |
फळसै ऊबी खेजड़ी 
जोवे अै दरसाव |
मिनख बापड़ो हारज्या
काळ जीतले दाव |
आभै उमड़ी बादळी
पण पटकी नि छांट |
किस्या जलम री काढ़ ली 
अनदाता सूं आंट |
बीज पडै जद कीं उगै
आ धरती री बाण |
बिन पाणी रै के करै
करै तो पाणी पाण |
हुवै लड़ाई जीत ले 
मरुधर रा जूझार |
पण इणने कुण टाळदे 
आ मालिक री मार |
खेत खळा सूना हुया
सूना हुया गुवाड़ |
नेह चूकगो नैण सूं 
तोडै़ बधगी राड़ |
कद धरती रै आवसी
उणियारा पर ओप |
सीळो पड़सी कद बता 
जबर काळ  रो कोप |
धोरां हाळा देश में 
पड़े कदे नी काळ |
हे मालिक अरदास है 
आप करो रिछपाळ |
म्हारे मरुधर देस री
राम करो रिछपाल |
आवे नी नेड़े  कदे 
ताती बळती भाळ |
पगां चालती दीसरी
बा बड़कां  री बात |
रोटी होज्या रामजी 
पेट भरे खा पात |
जूझै बै जुझार सा 
पडै जठ्यां तक पार |
कुण जाणे कुण जीत ले 
कुण किण सें  ज्या हार |
धान निमड्गो कोठले 
खाली होग्या खेत |
सो-कीं खुटगो काळ में 
बची भाग में रेत |
हीरा मोती निपजती
रेत निगळगी नाज |
काल जकी वरदान ही 
बणगी आज सराप |
करसो रैगो कळपतो 
मन में दरद दबा'र |
भैंत जीवणों हाथ हो 
लेगी भूख भगा'र |
ऊंळै मन सूं भी कदे
नी देखै तू आय |
म्हारो मरुधर बादळी
नीं आयो के दाय |
दूर उडावै मिनख नै 
खुद सांभळ नै डोर |
करै सो मरजी रामजी 
उण रो कीं नी जोर |
बूंद न  बरसी बरस में 
री उडीक अणमेत |
कैतो डरपी काळ सूं 
कै म्हांसूं नीं हेत |
दोनूं कानी लाग री 
बारैं भीतर आग |
लूंठी लू री लाय सूं 
घणी पेट री दाझ |
भूख मिटादे मिनख रै
आपस रो अपणेस ।
भूख दिखावै मिनख नै 
अणचायो परदेस ।
पोळी बारैं नीमडी 
नीचे टूटी खाट ।
धाप्यां कदे न नींद सूं 
याद रवैला ठाठ ।
भूख बणादे मतलबी 
भूख डिगादे नीत ।
दीठ बिसळज्या भूख सूं 
भूखो करै अनीत । 
सुपना आवै  सांच नी
आवै आळ पताळ ।
मरुधर तूठी मोकळी 
पाणी पड्यो अचाळ ॥
राम रूसगो रूंख सूं 
पान गया से सूख ।
छोडा बचगा बापडा 
उणनै खागी भूख ॥
काळ मरण रो नांव है 
काळ जेज री गाळ ।
भूख बिगाडै आज नै 
आगम भेळै काळ ॥
रोटी खायां बीतगा 
जाणै बरस पचास ।
मिनखां रै तन नीं रही 
आज नाज री बास ॥
रुळगा सगळा रावळा 
गया छोड सै गांव ।
तपो भलांई तावडो 
छिटको सीळी छांव ॥
रोहीडा रा रूखडा 
हुया झाळ सूं लाल ।
मरूधर आया काळ नै 
जाणै रैया दकाल ॥
घेर घुमेरी खेजड्यां 
बध्यो लूंग रो जाळ ।
म्हे पैली इ जाणगा 
अबकै पडसी काळ ॥
ठोड ठांयचो छूटग्यो 
छूट्यो प्यारो गांव ।
कूंळै मंडिया मोरिया 
आंगण सीळीं छांव ॥
मरी बापडी चिडकली
मनस्या मर में लो'र ।
बरस बीतगा रेत में 
न्हातां पाणी  गे'र ॥
फूल खिले नी पांखाड़ी
लूवां रो  रमझोळ ।
तुणको तक नी पांगरै
के प्राणां रो डोळ ॥ 
रळता, मिलता, बैठता,
करता मन री बात ।
चरभर बाजी खेलता
सै सुपना री बात ॥
घर में पाव न पीसणों 
तिरस्या डांगर ढ़ोर ।
रूसी कुदरत कद मनै
माणख रो के जोर ॥
घणे कोड सूं बाछड़ो
पाळ्यो,बणगो बैल ।
पड्यो बेचणों भूख सूं
भाटो मन पर मेल ।।
पिणघट री रौनक गई
बापरगी  सूनेड़।
जण-जण रै दुख सूं पडी
तालां मांय तरेड़ ॥
म्हैलां जगतो दीवलो 
सारी सारी रात ।
पण फेरयूं भी रैंवती
आधी मन री बात ।। 
काळ तनै अतरो कियां 
इण मरूधर अपणेस |
बेगो पूठो बावड़ै
ज्यावै जे परदेस |
प्रीत हुई अब पांगळी 
मतलब हुयो जावान |
धरम करम थोथा हुया
मूँगों धोबो धान |
मेल ऊंट पर गुदड़ा
हुया गाँव सूं भीर |
मूड मूड जोवै झूंपड़ा
भर्या नैण में नीर |
यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी|
 
	
	

