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भूख डिगादे नीत ।
दीठ बिसळज्या भूख सूं
भूखो करै अनीत ।
सुपना आवै सांच नीआवै आळ पताळ ।मरुधर तूठी मोकळी पाणी पड्यो अचाळ ॥ राम रूसगो रूंख सूं पान गया से सूख ।छोडा बचगा बापडा उणनै खागी भूख ॥ काळ मरण रो नांव है काळ जेज री गाळ ।भूख बिगाडै आज नै आगम भेळै काळ ॥ रोटी खायां बीतगा जाणै बरस पचास ।मिनखां रै तन नीं रही आज नाज री बास ॥ रुळगा सगळा रावळा गया छोड सै गांव ।तपो भलांई तावडो छिटको सीळी छांव ॥ रोहीडा रा रूखडा हुया झाळ सूं लाल ।मरूधर आया काळ नै जाणै रैया दकाल ॥ घेर घुमेरी खेजड्यां बध्यो लूंग रो जाळ ।म्हे पैली इ जाणगा अबकै पडसी काळ ॥ ठोड ठांयचो छूटग्यो छूट्यो प्यारो गांव ।कूंळै मंडिया मोरिया आंगण सीळीं छांव ॥ मरी बापडी चिडकलीमनस्या मर में लो'र ।बरस बीतगा रेत में न्हातां पाणी गे'र ॥
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यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |
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