भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश

1,653 bytes added, 18:28, 30 नवम्बर 2012
भूख डिगादे नीत ।
दीठ बिसळज्या भूख सूं
भूखो करै अनीत ।
सुपना आवै सांच नीआवै आळ पताळ ।मरुधर तूठी मोकळी पाणी पड्यो अचाळ ॥ राम रूसगो रूंख सूं पान गया से सूख ।छोडा बचगा बापडा उणनै खागी भूख ॥ काळ मरण रो नांव है काळ जेज री गाळ ।भूख बिगाडै आज नै आगम भेळै काळ ॥ रोटी खायां बीतगा जाणै बरस पचास ।मिनखां रै तन नीं रही आज नाज री बास ॥ रुळगा सगळा रावळा गया छोड सै गांव ।तपो भलांई तावडो छिटको सीळी छांव ॥ रोहीडा रा रूखडा हुया झाळ सूं लाल ।मरूधर आया काळ नै जाणै रैया दकाल ॥ घेर घुमेरी खेजड्यां बध्यो लूंग रो जाळ ।म्हे पैली इ जाणगा अबकै पडसी काळ ॥ ठोड ठांयचो छूटग्यो छूट्यो प्यारो गांव ।कूंळै मंडिया मोरिया आंगण सीळीं छांव ॥ मरी बापडी चिडकलीमनस्या मर में लो'र ।बरस बीतगा रेत में न्हातां पाणी गे'र ॥ 
--------------------------------------
यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |
<poem>
514
edits