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प्रेमधारा / ‘हरिऔध’

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जो सत्ता है नित्य सत्य चिन्मयी अनूपा।
संस्कृति संसृति मूली भूत परम आनन्द स्वरूपा।
विश्व-व्यापिनी विपुल-सूक्ष्म जिसकी है धारा।
वस्तुमात्र में है विकास जिसका अति न्यारा।
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