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उलटबांसी / नीरज दइया

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|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
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{{KKCatKavita‎}}<poem>तुम सोती हो
घोड़े बेचकर
उन्हीं घोड़ों को लेकर मैं
निकलता हूं-
ढूंढऩे तुम्हें।
नींद में
फैली है कितनी जमीन
जब ढूढ़ते-ढूढ़ते हार जाता हूं,
उचट जाती है ।
मैं जाग कर सबसे पहले
घोड़ों को पिलाता हूं पानी! </poem>
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