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तुम / नीरज दइया

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|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
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{{KKCatKavita‎}}<poem>जपता हूं मैं
नाम तुम्हारा
या जपती है देह
नाम तुम्हारा?

तुम नदी हो या सागर
मैं बुला रहा हूं तुम्हें
या तुम ही आ रही हो दौड़ती हुई
मेरे पास....
·हीं ऐसा तो नहीं
·ि बुलाती हो तुम
और दौड़ रहा हूं मैं!

खैर जो भी हो
मिलना तो तय है-
हमारा!</poem>
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