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(1) करहु मुख = हाथ से भी और मुख से भी । जस = जैसे ही ।
 
(2) अवधि सिर पहुँची = अवधि किनारे पहुँची अर्थात् पूरी हुई । बेगि होहु = जल्दी करो ।
 
(3) करहिं....भौंरा = हम तुम्हें अब सूली से ऐसा ही छेदेंगे जैसा केतकी के काँटे भौंरे का शरीर छेदते
हैं । हरि = प्रत्येक । आहौं =हूँ ।
ओधा = लगा, उलझा जैसे , सचिव सुसेवक भरत प्रबोधे । निज निज काज,पाय सिख ओधे ॥
गूद =गूदा । हान = हानि । समान =समाया हुआ ।
 
(4) गाढ = संकट । देखन लागी = देखने के लिए ।
 
(5) करौं अदेसू = आदेश करता हूँ, प्रणाम करता हूँ । चाहा = ताका ।
महेसी =पार्वती । हिय महेस...परदेसी = पार्वती कहती हैं कि जब महेश इनके हृदय में
हैं तब ये परदेसी क्यों किसी के सामने सिर झुकाएँ । तीर होइ चलै = साथ दे, पास जाकर
सहायता करे ।
 
(6) हेरा = हेर, ताकते हैं । दसौंधी = भाँटों की एक जाति । जिउ पर भए = प्राण देने
पर उद्यत हुए ।
 
(7) राजा = गंधर्वसेन । औंधी =नीची । असाई = अताई बेढंगा ।(भारत =
महाभारत का सा युद्ध । ओधा =ठाना, नाँधा । अस्टौ कुरी = अष्टकुल नाग । बसंदर =
दौडा । नवोंनाथ = गोरखपंथियों के नौ नाथ ।
चौरासी सिद्ध = बौद्ध वज्रयान योगियों के चौरासी सिद्ध ।
 
(9) अभाऊ = आदर भाव न जाननेवाला, अशिष्ट, बेअदब । बरम्हाऊ = आशीर्वाद । बासू = वासुकि । माँगौ धरि केसा =
बाल पकड कर बुला मँगाऊँ ।
 
(10) बरिबंड = बलवंत, बली । तपै = पकाता (था)।
सूक = शुक्र । सुमंता = मंत्री । मसिआरा = मसिंयार, मशालची । बार =द्वार ।
बोहारा करै = झाडू देता था । सपने काँधा = जिसे उसने स्वप्न में भी कुछ समझा ।
काँधा = माना, स्वीकार किया । ओछ = छोटा ।
 
(11) सहुँ = सामने । अरगला = रोक, टेक,
अड । नसेनी = सीढी । भेंट जेहि कढै = जिससे इनाम निकले ।
बरम्हावसि = आशीर्वाद देता है । काह छरे अस पावा = ऐसा छल करने से तू क्या पाता है
चितभंग = विक्षेप ।
 
(12) परे नहिं = गाजा चाहे बज्र ही न पडे । महापातर =महापात्र
(पहले भाँटों की पदवी होती थी ) भाँट करा = भाँट के समान, भाँट की कला धारण करके ।
ओहट = ओट, हट परे ।
 
(15) मेले = जुटे । उरए = उत्साह या चाव से भरे (उराव = उत्साह, हौसला ) माल = मल्ल
पहलवान । दर = दल । झुरमुट = अँधेरा । होइ बीता = हुआ चाहता है । चढि जो रहै = जो
अग्रसर होकर बढता है । अगमन = आगे । अचंभौ = अद्भुत व्यापार ।
 
(16) अस कै = इस प्रकार । जूह = जूथ । जस = जैसे ही । तस =तैसे ही । बगमेल = सवारों की पंक्ति ।
अगसरी = अग्रसर, आगे । भँवत = चक्कर खाते हुए । अँतरीख = अंतरिक्ष, आकाश ।
लीखा -लिख्या , एक मान जो पोस्ते के दाने के बराबर माना जाता है । खोज -पता, निशान
रोज रोदन, रोना
 
(17) ईसर = महादेव । मृदमंडा = धूल से छा गया । फिरि =विमुख होकर । बारा = कन्या ।
 
(18) बसीठी = दूतकर्म । पहिले करुइ = जो पहले कडवी थी । परवाँनहु = प्रमाण मानो ।
काँधै = अँगीकार करता है, स्वीकार करता है । परीख = परखता है ।
 
(19) रूसा = रुष्ट ।
साँती = शांति । फुलवार = प्रफुल्ल । रहस =आनन्द ।
 
(20) होहु न...भोजा = तुम विक्रम के समान भूल न करो ।रतमुही = लाल मुँह वाली
 
(21) तप कसा = तप में शरीर को कसा । पति = स्वामी । निदोषहि = बिना दोष के ।
बाजा = पहुँचा । सरि = बराबरी । सँवरौं विक्रम बात = विक्रम के समान जो राजा गंधर्व
चाँपा = दबाया, थामा । झाँपा = ढँका हुआ । काटर = कट्टर । तुखारू = घोडा । तुरय =
घोडा । छतीसौ कुरी = छत्तीसों कुल के क्षत्रिय ।
 
(23) `अस्त-अस्त' = हाँ हाँ, वाह वाह ! बरोक = बरच्छा, फल-दान । जयमार = जयमाल । केवा = कमल । उनाहिं = उन्हीं के
(मंगलाचरण के लिए) । काह सो जुगुति...आना = दूसरे उत्तर के लिये क्या युक्ति है ?