भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
।।एक।।हम अपना अंदरमात्र एकटा इंद्रधनुष ल’ क’गुनगुनाए नहि चाहैत छीहम जीब’ चाहैत छीएकटा संपूर्ण आकाशजाहि आकाशमेएकटा समन्वित स्वप्नएकटा समन्वित जीवनक संगकुम्हार-मोन लेले टहलल-बूलल करए
अपन परिवाक लेलई समयमुट्ठी भरि प्रकाशकेंजोगा हमरा एकटा इन्द्रधनुष द’ क’ रखबाक सेहन्ता लेनेअपनहि छाहरिक संग भुतिया रहल छीफुसियाब’ चाहैत अछिसभकें फराक-फराक आकाशएहि शहरसँ ओहि शहरफराक-फराक जीवनएहि डेरासँ ओहि डेरा....फराक-फराक स्वप्नसँगामएक पातर रेघा सननिर्बाधछटपटाइत रहल फराक-फराक राख’ चाहैत अछि....
गामक जाहि उजासमेकाल्हिउठि क’ ठाढ़ भेल रहीचतुर्दिक वायुरोग,आइ एक प्लेटफार्म सन भ’ गेल तनाव बढ़ि रहल अछि !ई प्लेटफार्म केंवेतनक नियमितता परपसिन्न नहि छनि-से एक फराक दुख संदेह चढ़ि रहल अछिअकारण मकान मालिक।।दू।।हमर ई जीवनलटकल सन देखाइत मुँहाँबज्जी बन्द क’ लेलक अछिबाल-बच्चाक ई स्थानान्तरणीय गामघरसहसाहम भोगि नहि पबैत छीभगैत छीभगैत रहैत छीभगिते जाइत छी ....आयु मुँह दूसैत मसक’ लागल अछिचादरमूस हम दुर्बल भेल जाइत छीछुछुन्नरि आ मोसक ।।तीन।।परिवारक इच्छा नहि रहै,हम गाम आक्रमण बढ़ि गेल रहीअछिनीक लागल रहए भोरबाँचल रहए बसातमे स्निग्धताचूनकोनो-तमाकूक संबंध शेष रहैने-कोनो कारण ल’ क’पाकल गहुमक झूमैत बालिक आंतरिक संगीतसमाज हकमि रहल अछितथा हर हरबाहक मिलापतें,सुनबा-देखबा-भोगबा लेल भेटल रहए..आरोप प्रत्यारोपक संसद गरमा उठल अछिअखरल छल बस एकेटा गपअछैत तमाम विपरीतकजे ओत’ हम हारब पसिन्न नहि रहीकरैत छीसंगीअपन सुख-साथी नहि रहएदुख जीवनगाम कुहरि रहल छलसमूहमे गाब’ चाहैत छीआ हम भागि रहल छलहुँअपन एहि स्वप्निल स्नेहिल ग्रह-नक्षत्रक बीचकोनो किरायाक मकानमेशीत-तापसँ लड़ैतशापित सन जीबाक लेलप्रतीक्षा कर’ चाहैत छी एक धु्रवताराअपन-अपन अंदर दिपदिपाब’ चाहैत छी.....
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,244
edits