ध्रुवतारा / विभूति आनन्द
हम अपना अंदर
मात्र एकटा इंद्रधनुष ल’ क’
गुनगुनाए नहि चाहैत छी
हम जीब’ चाहैत छी
एकटा संपूर्ण आकाश
जाहि आकाशमे
एकटा समन्वित स्वप्न
एकटा समन्वित जीवनक संग
कुम्हार-मोन लेले टहलल-बूलल करए
ई समय
हमरा एकटा इन्द्रधनुष द’ क’
फुसियाब’ चाहैत अछि
सभकें फराक-फराक आकाश
फराक-फराक जीवन
फराक-फराक स्वप्नसँ
फराक-फराक राख’ चाहैत अछि
चतुर्दिक वायुरोग, आ
तनाव बढ़ि रहल अछि
वेतनक नियमितता पर
संदेह चढ़ि रहल अछि
अकारण मकान मालिक
मुँहाँबज्जी बन्द क’ लेलक अछि
सहसा
मसक’ लागल अछि चादर
मूस आ छुछुन्नरि आ मोसक
आक्रमण बढ़ि गेल अछि
कोनो-ने-कोनो कारण ल’ क’
समाज हकमि रहल अछि
आ तें,
आरोप प्रत्यारोपक संसद गरमा उठल अछि
अछैत तमाम विपरीतक
हम हारब पसिन्न नहि करैत छी
अपन सुख-दुख जीवन
समूहमे गाब’ चाहैत छी
अपन एहि स्वप्निल स्नेहिल ग्रह-नक्षत्रक बीच
शीत-तापसँ लड़ैत
प्रतीक्षा कर’ चाहैत छी एक धु्रवतारा
अपन-अपन अंदर दिपदिपाब’ चाहैत छी.....