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'{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम र...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
}}
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<poem>
हम रौशनी के शह्र में साहब अबस गए
फिर यूं हुआ की हमपे अँधेरे बरस गए
हमने दुआ बहार की मांगी ज़रूर थी
कैसी बहार आई कि पत्ते झुलस गए
पढ़-पढ़ के सोचता हूँ किताबों की शक्ल में
कितने अज़ीम लोग मिरे घर में बस गए
देखा नज़ारा हमने ये ख्वाबों में ही सही
धरती की इक पुकार पे बादल बरस गए
तजज़ीया कीजियेगा जो मज़हब का दहर में
हर पल में पाइएगा कि दो-चार-दस गए
जिस सम्त भी चलें उसी चेहरे की खोजबीन
आखिर को हम भी उसकी गली ही में बस गए
</poem>
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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
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हम रौशनी के शह्र में साहब अबस गए
फिर यूं हुआ की हमपे अँधेरे बरस गए
हमने दुआ बहार की मांगी ज़रूर थी
कैसी बहार आई कि पत्ते झुलस गए
पढ़-पढ़ के सोचता हूँ किताबों की शक्ल में
कितने अज़ीम लोग मिरे घर में बस गए
देखा नज़ारा हमने ये ख्वाबों में ही सही
धरती की इक पुकार पे बादल बरस गए
तजज़ीया कीजियेगा जो मज़हब का दहर में
हर पल में पाइएगा कि दो-चार-दस गए
जिस सम्त भी चलें उसी चेहरे की खोजबीन
आखिर को हम भी उसकी गली ही में बस गए
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