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01:15, 6 सितम्बर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=‘खावर’ जीलानी
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बस तेरे लिए उदास आँखें
उफ़ मस्लहत ना-शनास आँखें
बे-नूर हुई हैं धीरे धीरे
आईं नहीं मुझ को रास आँखें
आख़िर को गया वो काश रूकता
करती रहीं इल्तिमास आँखें
ख़्वाबीदा हक़ीक़तों की मारी
पामाल और बद-हवास आँखें
दरपेश जुनूँ का मरहला और
फ़ाक़ा है बदन तो प्यास आँखें
</poem>