भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस तेरे लिए उदास आँखें / ग़ालिब अयाज़
Kavita Kosh से
बस तेरे लिए उदास आँखें
उफ़ मस्लहत ना-शनास आँखें
बे-नूर हुई हैं धीरे धीरे
आईं नहीं मुझ को रास आँखें
आख़िर को गया वो काश रूकता
करती रहीं इल्तिमास आँखें
ख़्वाबीदा हक़ीक़तों की मारी
पामाल और बद-हवास आँखें
दरपेश जुनूँ का मरहला और
फ़ाक़ा है बदन तो प्यास आँखें