|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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काळजै उपजी पीड़ कथूं कै
हो ज्याऊं रूंखड़ौ कोई रोही रो
फेरूं करै सुवाल
ओ काळ !
‘‘ "क्यूं भाया दीस्सै नींसुरसत रौ सूनौ भौन ?’’"
अर
पसर जावै सरणाटौ
काळजै रै बीचो-बीच
जठै सबद साहित रौ
पड़यौ है आंख्यां मीच !
</Poem>