काळजै उपजी पीड़ कथूं कै
हो ज्याऊं रूंखड़ौ कोई रोही रो
उभौ रैवूं मौन !
पण -
हो नीं सकूं
के करूं काळजै उकळतै लोही रो ?
इणी खातर
सौधूं कोई जुगत
कै हो सकूं इण पीड़ स्यूं मुगत।
पण-
फेरूं करै सुवाल
ओ काळ !
"क्यूं भाया दीस्सै नीं
सुरसत रौ सूनौ भौन?"
अर
पसर जावै सरणाटौ
काळजै रै बीचो-बीच
जठै सबद साहित रौ
पड़यौ है आंख्यां मीच!