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|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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फूटग्यो घड़ो
बुझग्यो दीयो
सपकैण जाता रया
जळ‘र अगन,
झरग्यो फूल
टूटग्यो सपनूं
छोड‘र कोनी गया
मैक‘र मन !
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