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पाडो / रूपसिंह राजपुरी

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|संग्रह=
}}
{{KKCatMoolRajasthaniKKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>पक्को राग गाण लागयो,
कब्बाल जी बाडो।
खूब लम्बी हेक काडी,
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