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वीणा की तार / हरकीरत हकीर

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<poem>मैं अक्षरों में
तलाशती रही …
तुम सतरों में गुम हो गए
मैं नज्मों में ढूढती रही
तुम गीतों में डूब गए
मैं सुरों को छेड़ती रही
तुम सरगम में गुम गए
अय हमसफ़र ….
मैं कभी तेरी वीणा की
तार न बन सकी ….
</poem>
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