{{KKCatLokgeet}}
<poem>
सखि आरी हेदक्षिन के चीर-पहिर ले ले गोरिय, हाँ, रे जोतलीं में गोला बरधा, बोअलीं मकाई। पहिले खान्छ चेहरा सूगा तब करेले नेवाना रे।लामी केस पँकर झाँपा रेसा।कि हो बिरहा बुबसु मोरलेहल बाँस के डलरिवा, सँवरी बठिनियाँ उमड़ि रस देले गोरी बिहँसत आवे रे।।१।।सखि आरी हेडगर बुलिय-बुलि हाँक मारे गोरिया, कि आगे तिरो झूमके थैलीकहाँ जे बारे मानुष जोड़ि जँतवा।।केहि घर बारे मानुष जोड़ी जँतवा, पीछे तीरो बासा रे।तनिक हम पीसब रे।।२।।ताहि को दाया, ताही को मायाऊँचीत कुरिबवा के नीची त दुअरिया, ताही को नाहीं आसा रे।हो बिरहा बसु मोरताहि घरे बारे मनुखजोड़ी जँतवा, सँवरी बठिनियाँ उमड़ि रस देइछो रे।।२।।तनिक पीसहु रे।।३।।सखि आरी हेतर कइले जुअवा से ऊपरी मकरिया, उमें देखो काली लेखा, उमे त मन छइना रे।कि पंछी होके उड़नो जान्दउलटि के जँतवा हलावे जँतसरिया, बसंने को मन छइना रे।हो हो रे बिरहा बसु मोर कि कसड़ी बठिनियाँ उमड़ि रस देइछो रे।।३।।तनिक भला पिसहु रे।।४।।
</poem>