भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दक्षिन के चीर-पहिर ले ले गोरिय / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दक्षिन के चीर-पहिर ले ले गोरिय, लामी केस पँकर झाँपा रेसा।
लेहल बाँस के डलरिवा, गोरी बिहँसत आवे रे।।१।।
डगर बुलिय-बुलि हाँक मारे गोरिया, कहाँ जे बारे मानुष जोड़ि जँतवा।।
केहि घर बारे मानुष जोड़ी जँतवा, तनिक हम पीसब रे।।२।।
ऊँचीत कुरिबवा के नीची त दुअरिया,
ताहि घरे बारे मनुखजोड़ी जँतवा, तनिक पीसहु रे।।३।।
तर कइले जुअवा से ऊपरी मकरिया,
उलटि के जँतवा हलावे जँतसरिया, तनिक भला पिसहु रे।।४।।