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|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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बात दिल की कह दी जब अशआर में
ख़त किताबत क्यूँ करूँ बेकार में

मरने वाले तो बहुत मिल जाएंगे
सिर्फ़ हमने जी के देखा प्यार में

कैसे मिटती बदगुमानी बोलिये
कोई दरवाज़ा न था दीवार में

आज तक हम क़ैद हैं इस खौफ से
दाग़ लग जाए न इस किरदार में

दोस्ती, रिश्ते, ग़ज़ल सब भूल कर
आज कल उलझी हूँ मैं घर बार में

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