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जाळ / किशोर कुमार निर्वाण

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|रचनाकार=किशोर कुमार निर्वाण
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>मकड़ी बणावै जाळ
पतळो अर झीणो-झीणो
जकै मांय फंस जावै
केई जीव-जंत
गंवा देवै
आपरी जान।

मिनख ई बणावै जाळ
बिना धागां रो झीणो-झीणो
जको दीखै ई नीं
फंस जावै
केई जीव-जंत
अर भोळा मिनख
खो देवै सो क्यूं ई!</poem>
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