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हमारे मनचले / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चुभते चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
सब तरह की सूझ चूल्हे में पड़े।

जाँय जल उन की कमाई के टके।

जब भरम की दूह ली पोटी गई।

लाज चोटी की नहीं जब रख सके।

लुट गई मरजाद पत पानी गया।

पीढ़ियों की पालिसी चौपट गई।

चोट खा वह ठाट चकनाचूर हो।

चाट से जिस की कि चोटी कट गई।

लग गई यूरोपियन रंगत भली।

क्यों बनें हिन्दी गधो भूँका करें।

साहबीयत में रहेंगे मस्त हम।

थूकते हैं लोग तो थूका करें।
</poem>
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