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कच्चे फल / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चुभते चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
हो गया ब्याह लग गईं जोंकें।

फूल से गाल पर पड़ी झाईं।

सूखती जा रहीं नसें सब हैं।

भीनने भी मसें नहीं पाईं।

पड़ गया किस लिए खटाई में।

क्यों चढ़ी रूप रंग की बाई।

फिर गई काम की दुहाई क्यों।

मूँछ भी तो अभी नहीं आई।
</poem>
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