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11:31, 31 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन केशरी
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|संग्रह=
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<poem>
तिघरा से होते हुए
दीख पड़ा
गुप्तेश्वर महादेव
कई कई बार सुना नाम गुप्तेश्वर
ठीक तुम्हारे मन की तरह
न खुला
न बंद
कितनी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं
वहाँ पहुँचने के लिए
फिर वापस खुद तक लौटने के लिए
जो कभी हो ही नहीं पाया
न कभी पहुँची
न लौटी ही
उस दिन भी
दीख पड़ा
गुप्तेश्वर महादेव
बादलों में छिपा....
</poem>