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11:41, 31 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन केशरी
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|संग्रह=
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<poem>
वह रेत में दबी मछली थी
जो मुझे मिल गई
निर्जन बियाबान मरुस्थल में
पानी
तलाशते तलाशते ...
पानी बीएस उसकी आंखो में था
मुझे देख वह डबडबाई
और
मैंने अंजुरी भर पी लिया उस खारे जल को ...
</poem>
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