937 bytes added,
08:49, 2 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह भरी तो क्या जवाहिर से भरी।
जो नहीं हित-साधनाओं में सधी।
जब बँधी वह बाँधने ही के लिए।
तब अगर मूठी बँधी तो क्या बँधी।
लाल मुँह कर तोड़ दे कर दाँत को।
साधने में बैर के ही जब सधी।
जब खुले पंजा, बँधो मूका, बनी।
तब खुली क्या और क्या मूठी बँधी।
</poem>