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<poem>
कच्ची मिटटी था
गढ़ा पकाया
समर्पण और विश्वास की आंच पर
रिश्ता
पका हुआ
सौंप दिया तुम्हें अब कहते हो तुम कि
पकी फसल की तरह होता है
पका रिश्ता
</poem>
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