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09:37, 9 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=देवयानी
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|संग्रह=
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<poem>
उसने अपनी उँगलियों के पोरों को
डुबोया हरे रंग मे
और
खींच दी हैं लकीरें
हृदय पर
उसने गाढ़े नीले से
रंग दिया है फलक को
सुर्ख लाल रंग को
बिखेर दिया है उसने
घर के आँगन मे
पीले फूलों से ढक दिया है उसने
आस पास की वनस्पतियों को
उसे हर बार चाहिए
नया सफैद कागज
जिसे हर बार
सराबोर कर देना चाह्ता है वह रंगों से
बच्चा रंगरेज़
</poem>