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Kavita Kosh से
<poem>
सड़क सुधर रही है
मैं काम पर आते-जाते रोज़ देखता हूंहूँ
उसका बनना
प्रयोजन नहीं
मैं जैसे शब्दों के अभिप्रायों के बारे में सोचता हूंहूँ
वैसे ही क्रियाओं के प्रयोजनों के बारे में
अगर कुछ सुधर रहा है तो मैं उत्सुक हो जाता हूंहूँ
सड़क सुधर रही है तो हमारी सहूलियत के लिए
लेकिन यह भी हेतु ही है
सुधर जाएंगे
इस कवि को छुट्टी दीजिए पाठकोपाठकों
क्योंकि आप तो समझते ही है
अब राजनेताओं को समझने दीजिए यह उलटबांसी