631 bytes added,
04:35, 21 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनूप सेठी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लौकी बन लटकूं
मुदगर सी लंबी हो या हंडिया
फर्क नहीं पड़ता
दिल की बीमारी में बाबा कोई
रस निचोड़ के पिलवा दे या
अंतस को खाली करके
तार पर सुर तान करके
इकतारा बन बाजूं
कड़ियल हाथों में साजूं.
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader