Changes

तुम आओ भी / निवेदिता

1,645 bytes added, 09:19, 21 अप्रैल 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निवेदिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निवेदिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
घने कोहरे से लिपटी शाम की नीली आभा में
ओस की नन्हीं बूदें चमकती हैं

शाखों पर
पत्तियां जो हरी थी
बूंदों से भर गयी है

झर रहे हैं कनेर के फूल
तुम्हारी हंसी की तरह
भर लेना चाहती हूँ सांसों में
गर्म, पिघलती हंसी

फैल रही है रात कतरा-कतरा
मेरी बंजर भूमि में
खिल आए हैं गुलाब के फूल

तुम्हारी देह मेरी आत्मा में गुथीं हुई
उत्तेजित चक्रवात की तरह
घुमड़ती रहती है

मैं चाहती हूं सुनो तुम
वे गीत जो गाए नहीं गए
वे गीत जो रचे नहीं गए
वो प्रेम जो पुरानी राहों में
बिछा रह गया

वो एकान्त जो धधकता रहा
प्यार करो मुझे
मुझमें डूब जाओ
कि मेरी आत्मा पर हो बारिश
शीत और आग के बीच
मैं खिलाऊँ जीवन के फूल
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits