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मैं अपने इस जन्मदिन में खो गया हूँ.
चाहता हूँ,जो लोग मेरे बन्धु हैं,
उनके कर-स्पर्श के भीतर से,
मर्त्यलोक के अंतिम प्रीतिरस के रूप में,
जाऊँगा जब पारगामी क्षुद्र नौका पर
भाषाहीन अन्त के उत्सव समारोह में.
</poem>
६ मई १९४१
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