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खो गया हूँ आज अपने जन्मदिन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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मैं अपने इस जन्मदिन में खो गया हूँ.
चाहता हूँ, जो लोग मेरे बन्धु हैं,
उनके कर-स्पर्श के भीतर से,
मर्त्यलोक के अंतिम प्रीतिरस के रूप में,
जीवन का चरम प्रसाद ले जाऊँ,
मनुष्य का अंतिम आशीर्वाद ले जाऊँ.
मेरी झोली आज रिक्त है;
जो कुछ था देने योग्य,
सब दे चुका हूँ उसे झाड़कर.
पाऊँ यदि कुछ भी प्रतिदान में--
किंचित स्नेह, किंचित क्षमा--
तब उसे साथ लिये जाऊँगा,
जाऊँगा जब पारगामी क्षुद्र नौका पर
भाषाहीन अन्त के उत्सव समारोह में.
६ मई १९४१