1,095 bytes added,
07:59, 12 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रांजल धर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ज़िन्दगी के लम्बे प्लेटफ़ॉर्म पर
न जाने क्या सोचते-सोचते
ग़लत टिकट ख़रीद डाला
मौत के एक हिम्मती लेकिन उदास यात्री ने।
साँसों की टिकट-खिड़की से
आशंकित सफर के
अनेक ख़तरे नज़र आ जाते हैं,
ऐसे बहुत सारे यात्री
सफर के बन्दोबस्त को
टूटा और बिखरा हुआ पाते हैं!
और लाल-हरे सिग्नलों के कितने ही नियम
पल भर में टूट जाते हैं।
कुछ को लूटता है सफर और कुछ
सफर को ही लूट जाते हैं।
</poem>