भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पल भर में / प्रांजल धर
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी के लम्बे प्लेटफ़ॉर्म पर
न जाने क्या सोचते-सोचते
ग़लत टिकट ख़रीद डाला
मौत के एक हिम्मती लेकिन उदास यात्री ने।
साँसों की टिकट-खिड़की से
आशंकित सफर के
अनेक ख़तरे नज़र आ जाते हैं,
ऐसे बहुत सारे यात्री
सफर के बन्दोबस्त को
टूटा और बिखरा हुआ पाते हैं!
और लाल-हरे सिग्नलों के कितने ही नियम
पल भर में टूट जाते हैं।
कुछ को लूटता है सफर और कुछ
सफर को ही लूट जाते हैं।