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04:05, 13 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वाज़दा ख़ान
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
ख्वाहिशों का विलाप हुआ
कुफ्र हुआ
और कुछ न हुआ
बादल फटा पानी गिरा आसमान से
दरक दरक कर
चट्टानें टकराती बिखरती रहीं
और कुछ न हुआ
उसने जेब से अपना हाथ
निकाल क्षितिज पर उगे
इन्द्रधनुष को अचानक छू लिया
एक मुट्ठी रंग उसकी हथेलियों में आए
और कुछ न हुआ
जिस्मों का धीरे धीरे बुत में
तब्दील होते जाना / नब्जों का सुन्न होना
और कुछ न हुआ
सूखे पत्तों को समेटकर
दामन में भर लिया
आग लगी और कुछ न हुआ.
</poem>