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|रचनाकार=अखिलेश तिवारी
|अनुवादक=
|संग्रह=आसमाँ होने को था / अखिलेश तिवारी
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<poem>
तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया
नायब ज़िन्दगी को भी बेकार कर गया

मिटटी का घर बिखरना था आखिर बिखर गया
अच्छा हुआ कि ज़ेहन से आंधी का डर गया

बेहतर था कैद से ये बिखर जाना इसलिए
ख़ुश्बू की तरह से मैं फिजा में बिखर गया

'अखिलेश' शायरी में जिसे ढूंढते हो तुम
जाने वो धूप छाँव का पैकर किधर गया.
</poem>
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